अंतर्दष्टि हमारा जीवन बदल देती है

 अंतर्दष्टि हमारा जीवन चीजो को वैसी ही मत मान लेना, जैसी वे दिखाई पड़ती हैं। उनके भीतर बहुत कुछ है। एक आदमी मर जाता है। हमने कहा,आदमी मर गया।जिस आदमी नेइस बात को यही समझकर छोड़ दिया, उसके पास अंतर्दृष्टि नही है।गौतम बुद्ध एक महोत्सव मे भाग लेने जाते थे।रास्ते मे उनके रथ मे उनका सारथी था।और वह थे और उन्होने एक बूढे आदमी को देखा।वह उन्होने पहला बूढ़ा देखा।जब गौतम बुद्ध का जन्म हुआ,तो ज्योतिषियों ने उनके पिता को कहा कि यह व्यक्ति बड़ा होकर या तो चक्रवर्ती सम्राट होग और या संन्यासी हो जायेगा।उनके पिता ने पूछा कि मै इसे संन्यासी होने से कैसे रोक सकता हूँ।

ज्योतिषी की अद्भुत बात उस ज्योतिषी ने कहा,अगर इसे सन्यासी होने से रोकना है,तो इसे ऐसे मौके मत देना,जिससे इसमे अंतदृष्टि पैदा हो जाए तो पिता ने कहा ये तो बड़ा मुश्किल है क्या करेगे उस ज्योतिषी ने कहा इसकी बगिया मे फूल कुम्हलाने से पहले अलग कर देना।यह कभी कुम्हलाया हुआ फूल न देख सके क्योकि यह कुम्हलाया हुआ फूल देखते ही पूछेगा क्या फूल कुम्हला जाता है,और यह पू छेगा क्या मै भी कुम्हला जाउँगा,और इसमे अंर्तदृष्टि पैदा हो जायेगी इसके आस -पास बूढ़े लोगो को मत आने देना अन्यथा पूछेगा या बूढ़े हो गये क्या मै भी बूढ़ा हो जाउँगा,यह कभी मृत्यु को न देखो पीले पत्ते गिर जाते है मनुष्य भी एक दिन पीला होकर गिर जायेगा,क्या मै भी गिर जाउँगा,और तब इसमे अंर्तदृष्टि पैदा हो जायेगी।

पिता की चेष्टा उन्होने ऐसी व्यावस्था की, कि बुद्ध के युवा होते -होते तक उन्होने पीला पत्ता नही देखा, कुम्हलाया हुआ फूल नही देखा, बूढ़ा आदमी नही देखा, मरने की ओर खबर नही सुनी। लेकिन यह कब तक हो सकता था? इस दुनिया मे किसी आदमी को कैसे रोका जा सकता है कि मृत्यु को न दखे? कैसे रोका जा सकता है कि वह पीले पत्ते न देखे? केसे रोका जा सकता है कि कुम्हलाए हुए फूल न देखे? लेकिन मै आपसे कहता हूँ कि आपने कभी मरता हुआ आदमी न देखा होगा,पीला पत्ता नही देखा होगा, कुम्हलाया फूल नही देखा होगा। आपको किसी ने रोका नही है और आप देख नही पा रहे हैं। अंंर्तदृष्टि नही है,नही तो आप संन्यासी हो जाते।तो जितने लोग संन्यासी नही है, मानना चाहिए कि उनमे अंर्तदृष्टि नही है।यह अंर्तदृष्टि है। चीजो को उनके ओर -छोर तक देख लेना चाहिए।चीजें जैसे दिखाई पड़े उनको वैसा स्वीकार न कर लेना,उनके अंतिम चरण तक।जिसमे अंर्तदृष्टि पैदा होगी,वह इस भवन की जगह खंडहर भी देखेगा।जिसमे अंर्तदृष्टि होगी, वह यहाँ इतने जिंदा लोगो के बीच मुर्दा लोग भी देखेगा-इन्ही के बीच, इन्ही के साथ जिसमे अंर्तदृष्टि होगी,वो जन्म के साथ ही मृत्यु को भी देख लेगा,औरसुख के साथ दुख को भी,और मिलन के साथ विछोह को भी।अंर्तदृष्टि आर-पार देखने की विधि है।और जिस व्यक्ति को सत्य जानना हो, उसे आर-पार देखना सीखना होगा,क्योकि परमात्मा कही और नही है। जिसे आर -पार देखना आ जाए,उसे यहीं परमात्मा उपलब्ध हो जाता है।वह आर-पार देखने के माध्यम से हुआ दर्शन है।
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